यह एक साहित्य है जिसमें अभिजात्यता या सजावटी होने का कोई दबाव नहीं है। न ही हमने कभी नैतिकता की चादर ओढ़ने की कोशिश की है। इस साहित्य का नाम भले ही 'बकर साहित्य' है पर बकवास कुछ भी नहीं ।
'बकर साहित्य' हिंदी साहित्य की वह विधा है जो सड़क के पास की चाय के दुकानों, गोलगप्पे के ठेलों, स्कूल-कॉलेज के हॉस्टलों से होते हुए बैचलर लौंडों के उन कमरों पर पहुँचती है जहाँ ग़ालिब है, मोमिन है, ट्रॉटस्की है, आंद्रे ब्रेताँ है और कॉस्मोपॉलिटन का पुराना-सा इशू भी। उन्हीं कमरों में कटरीना की तस्वीर भी है और लियोनार्दो के स्फुमातो इफ़ेक्ट को बताती किताब भी।
उन कमरों में झाडू न लगी हो, बर्तन गंदे हों लेकिन जब चार लौंडे साथ बैठकर मदिरा का सेवन कर रहे हों, पाँचवा सिर्फ चखना दे रहा हो तो मोदी-ओबामा से लेकर सचिन- गाँगुली, निकोल्सन डी नीरो, काफ़्का-कामू, मंटो-प्रसाद, कबीर नानक तक पर गहन चर्चा हो जाती है।
बकर साहित्य यहाँ साँस लेता है, स्वच्छंद होकर। यहाँ साहित्यकार नग्न होता है। चाहे वह नशे में हो या होश में, एक-एक बात दुनियावी कपड़ों और रंग-बिरंगे चश्मों के परे करता है। यहाँ आलोचना की जगह है।
बकर पुराण | Bakar Puran
Author
Ajeet Bharti
Publisher
Hind Yugm
No. of Pages
176