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"चन्द्रगुप्त - यह नाटक 'चन्द्रगुप्त मौर्य' के उत्थान के साथ-साथ उस समय के महाशक्तिशाली राज्य 'मगध' के राजा 'धनानंद' के पतन की कहानी भी कहता है। यह नाटक 'चाणक्य' के प्रतिशोध और विश्वास की कहानी भी कहता है। यह नाटक राजनीति, कूटनीति, षड़यन्त्र, घात-आघात-प्रतिघात, द्वेष, घृणा, महत्वाकांक्षा, बलिदान और राष्ट्र-प्रेम की कहानी भी कहता है। इस नाटक का उद्देश्य यह है कि पाठकों को तत्कालीन समय का आभास भी हो सके और उसकी नियति से वे प्रेरणा भी ले सकें। " "जयशंकर प्रसाद - जन्म : 30 जनवरी, 1890 को वाराणसी में। प्रारम्भिक शिक्षा आठवीं तक किन्तु घर पर संस्कृत, अंग्रेज़ी, पालि, प्राकृत भाषाओं का अध्ययन। इसके बाद भारतीय इतिहास, संस्कृति, दर्शन, साहित्य और पुराण कथाओं का एकनिष्ठ स्वाध्याय। पिता देवी प्रसाद तम्बाकू और सुंघनी का व्यवसाय करते थे और वाराणसी में इनका परिवार सुंघनी साहू के नाम से प्रसिद्ध था। छायावादी युग के चार प्रमुख स्तम्भों में से एक। एक महान लेखक के रूप में प्रख्यात। विविध रचनाओं के माध्यम से मानवीय करुणा और भारतीय मनीषा के अनेकानेक गौरवपूर्ण पक्षों का उद्घाटन। 48 वर्षों के छोटे से जीवन में कविता, कहानी, नाटक, उपन्यास और आलोचनात्मक निबन्ध आदि विभिन्न विधाओं में रचनाएँ। 14 जनवरी, 1937 को वाराणसी में निधन। महाकवि के रूप में सुविख्यात जयशंकर प्रसाद हिन्दी साहित्य में एक विशिष्ट स्थान रखते हैं। तितली, कंकाल और इरावती जैसे उपन्यास और आकाशदीप, मधुआ और पुरस्कार जैसी कहानियाँ उनके गद्य लेखन की अपूर्व ऊँचाइयाँ हैं। काव्य साहित्य में कामायनी बेजोड़ कृति है। कथा साहित्य के क्षेत्र में भी उनकी देन महत्त्वपूर्ण है। भावना प्रधान कहानी लिखने वालों में वे अनुपम थे। आपके पाँच कहानी-संग्रह, तीन उपन्यास और लगभग बारह काव्य-ग्रन्थ हैं।"

चंद्रगुप्त । Chandragupt

SKU: 9788171783625
₹99.00 नियमित मूल्य
₹89.10बिक्री मूल्य
मात्रा
स्टाक खत्म
  • Author

    Jayshankar Prasad

  • Publisher

    Rajkamal Prrakashan

  • No. of Pages

    120

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