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आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी आलोचक तथा उपन्यासकार के रूप में तो अद्वितीय हैं ही, निबन्धकार के रूप में भी उनका सृजन उतना ही महत्त्वपूर्ण है। अपने निबन्धों, खासकर ललित निबन्धों में द्विवेदी जी आद्यंत कवि हैं और ‘कल्पलता’ उनके प्रायः ऐसे ही निबन्धों की बहुचर्चित कृति है। द्विवेदी जी के निबन्धों के मूल तत्त्व हैं - अकुंठ भावोद्रेक, अप्रस्तुतों के भावोचित व्यंजक प्रयोग, सजीव बिम्बात्मकता और आयासहीन भाषा-शैली। यही कारण है कि उनके निबन्धों का प्रत्येक सहृदय पाठक उनकी कल्पनाशील भावप्रवणता से एकमेक होते हुए एक सारस्वत यात्रा का आनन्द प्राप्त करता है और उस ज्ञान-कोश की उपलब्धि भी, जो उन जैसे सहृदय सर्जक के अनुभावित मणि-माणिक्यों से परिपूर्ण है। द्विवेदी जी के निबन्धकार के बारे में लिखते हुए पं. विद्यानिवास मिश्र ने कहा है कि उनके निबन्धों में उनका बहुश्रुत और कथा-कौतुकी व्यक्तित्व बराबर अंतर्ग्रंथित रहता है, जो बालकों की तरह मात्र कौतुकी ही नहीं, महाकाल की लीला से उन्मथित भी है। उन्हीं के शब्दों में: ‘द्विवेदी जी के निबन्धों का संयोजन-तंत्र उनके इस व्यक्तित्व का ही सहज परिणाम है। इसीलिए वह सायास ढला नहीं लगता, और इसी के सहारे साधारण-सा बिम्ब (भी) जाने कितनी वस्तुओं को, कितनी विचारधाराओं को जोड़ने का माध्यम बन जाता है।’ निश्चय ही द्विवेदी जी की यह कृति शास्त्र को लोक से जोड़नेवाली उनकी विदग्ध रचनात्मकता का अप्रतिम साक्ष्य है।

कल्पलता । Kalplata

SKU: 9788171788934
₹80.00 नियमित मूल्य
₹72.00बिक्री मूल्य
मात्रा
स्टाक खत्म
  • Author

    Hazari Prasad Dwivedi

  • Publisher

    Rajkamal Prrakashan

  • No. of Pages

    120

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