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यहाँ जो भी रचनाएँ संकलित हैं वे पहले अन्य किसी संग्रह में प्रकाशित नहीं की गयी हैं। सुविधा के लिए रचनाओं के साथ उनका लेखन वर्ष भी दे दिया गया है।

सन् 1974 में युगधारा और 'सतरंगे पंखों वाली' की अधिकांश रचनाओं के साथ आत नयी रचनाओं ('मन्त्र', 'तर्पण', 'राजकमल चौधरी', 'वह कौन था, 'दूर बसे उन नक्षत्रों पर', 'देवी लिबर्टी, तालाब की मछलियाँ, और 'जयति जयति जय सर्व मंगला) को मिलाकर 'तालाब की मछलियाँ नामक संग्रह आया था। वह संग्रह दस-बारह वर्षों से उपलब्ध नहीं है। गत चार-पाँच वर्षों से 'युगधारा' और 'सतरंगे पंखों वाली' दोनों संग्रह अपने-अपने मूल रूप में उपलब्ध हैं। अतः उन आठों रचनाओं को किसी न किसी संग्रह में आ जाना चाहिए था। उसी क्रम में उन रचनाओं में से चार इस संग्रह में ली जा रही हैं।

'रामराज' बहुचर्चित कविता है। लेकिन अब तक पूरी कविता मिल नहीं पायी है। इसके मात्र दस टुकड़े 'हंस' के जून 1949 के अंक में छपे थे। जो अपूर्ण है। 'हंस' के अगले अंकों में कविता का शेष अंश नहीं है। सम्भव है कि किसी और पत्रिका में हो जहाँ तक हमारी पहुँच नहीं हो पायी है अब तक।

बहुत प्रयास के बाद भी पाठान्तर और पाठदोष की सम्भावना बनी हुई है-यह हमारी लाचारी है।

-शोभाकान्त

Is Gubbare Ki Chaya Mein | इस गुब्बारे की छाया में

SKU: 9788170551805
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  • Author

    Nagarjun

     

  • Publisher

    Vani Prakashan

  • No. of Pages

    107

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