भारतीय जीवन-दर्शनकी दृष्टिमें किसी ग्रन्थकी उपयोगिता अथवा उपादेयता इस बातपर निर्भर करती है कि वह मानव जीवनको परम लक्ष्यतक पहुँचानेमें कहाँतक सहायक है। इस दृष्टिसे विचार करनेपर ज्ञात होता है कि श्रीमद्भगवद्गीताका एकमात्र आश्रय ही मानवमात्रको लक्ष्यकी प्राप्ति करा देनेमें सबसे अधिक सहायक, उपयोगी तथा सबल साधनके रूपमें कसौटीपर खरा उतरता है।
भगवान् श्रीकृष्णकी दिव्यवाणीसे निःसृत सर्वशास्त्रमयी गीताकी विश्वमान्य महत्ताको दृष्टिमें रखकर इस अमर संदेशको जन-जनतक पहुँचानेके उद्देश्यसे गीताप्रेसने श्रीमद्भगवद्गीताके अनेक छोटे-बड़े संस्करण तथा विस्तृत टीकाएँ प्रकाशित की हैं। उनमें परमश्रद्धेय ब्रह्मलीन जयदयालजी गोयन्दकाद्वारा प्रणीत यह 'तत्त्वविवेचनी' गीताकी एक दिव्य टीका है।
Shrimad Bhagvad Gita Tatvavivechni | श्रीमद्भगवद्गीता तत्त्वविवेचनी
Author
Jaydayal Goyandka
Publisher
Gitapress
No. of Pages
959