मुंशी वज्रधर सिंह का मकान बनारस में है। आप हैं तो राजपूत पर अपने को 'मुशी' लिखते और कहते हैं। 'ठाकुर' के साथ आपको गंवारपन का बोध होता है। बहुत छोटे पद से तरक्की करते-करते आपने अन्त में तहसीलदारी का उच्च पद प्राप्त कर लिया था। यद्यपि आप उस महान पद पर तीन माय से अधिक न रहे और उतने दिन भी केवल एवज पर रहे, पर आप अपने का ‘साबिक तहसीलदार' लिखते थे और मुहल्ले वाले भी उन्हें खुश करने की ‘तहसीलदार साहब' ही कहते थे। यह नाम सुनकर आप खुशी से अकड़ जाते थे, पर पेंशन केवल 25 रुपए मिलती थी इसलिए तहसीलदार साहब की बाजार-हाट खुद ही करना पड़ता था।
मनोरमा | Manorama
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Author
Munshi Premchand
Publisher
Unique Traders
No. of Pages
328
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