top of page
Product Page: Stores_Product_Widget

न केवल अपने प्रकाशन वर्ष (1870), बल्कि अपनी निर्मिति के लिहाज से भी पं. गौरीदत्त की कृति 'देवरानी जेठानी की कहानी' को हिन्दी का पहला उपन्यास होने का श्रेय जाता है। किंचित लड़खड़ाहट के बावजूद हिन्दी उपन्यास-यात्रा का यह पहला कदम ही आश्वस्ति पैदा करता है।

अन्तर्वस्तु इतनी सामाजिक कि तत्कालीन पूरा समाज ही ध्वनित होता है, मसलन- बाल विवाह, विवाह में फिजूलखर्ची, स्त्रियों की आभूषणप्रियता, बँटवारा, वृद्धों-बहुओं की समस्या, शिक्षा, स्त्री-शिक्षा; यानी अपनी अनगढ़ ईमानदारी में उपन्यास कहीं भी चूकता नहीं लोकस्वर में सम्पृक्त भाषा इतनी जीवन्त है कि आज के साहित्यकारों को भी दिशा-निर्देशित करती है। दृष्टि का यह हाल है कि इस उपन्यास के माध्यम से हिन्दी पट्टी में नवजागरण की पहली आहट तक को सुना जा सकता है।

कृति का उद्देश्य बारम्बार मुखर होकर आता है किन्तु वैशिष्ट्य यह कि यह कहीं भी आरोपित नहीं लगता। डेढ़ सौ साल पूर्व संक्रमणकालीन भारत की संस्कृति को जानने के लिए 'देवरानी जेठानी की कहानी' से बेहतर कोई दूसरा साधन नहीं हो सकता।

देवरानी जेठानी की कहानी | Devrani Jethani Ki Kahani

SKU: 9788189850661
₹99.00मूल्य
मात्रा
स्टाक खत्म
  • Author

    Pt. Gauridutt

  • Publisher

    Remadhav

  • No. of Pages

    71

अभी तक कोई समीक्षा नहींअपने विचार साझा करें। समीक्षा लिखने वाले पहले व्यक्ति बनें।

RELATED BOOKS 📚 

bottom of page