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कहानी के लिए मैंने एक बीज बो दिया, जो उग गया। एक सुनसान जगह पर कुछ उबड़-खाबड़ के बीच एक सपाट जगह।

तभी मुझे लगा- रेलगाड़ी सड़क पर चल रही है। रेलगाड़ी के चक्के टायर के हैं। तथा पटरी पर रेलगाड़ी की जगह बस खड़ी है। उसके चक्के रेलगाड़ी के चक्के की तरह लोहे के।

मैं जूते पहने था। उसमें भी लोहे के, स्केटिंग के चक्के लगे थे। स्केटिंग पहने मैं उठ खड़ा हुआ। चला तो एक-एक कदम दौड़ की तरह रखता। स्टेशन पर पुलिस वाला खड़ा था। उसने मुझे रुकने का हाथ दिखाया। मैं रुक गया।

कहाँ से आ रहे हो? उसने पूछा।

घर से – मैंने कहा।

घर कहाँ है?

मेरे पीछे है।- जवाब में मैंने कहा।

कहकर मैंने पीछे देखा था। और तब मैंने देखा चौराहे पर मेरा घर था। उसने मेरे घर को दूसरी खाली जगह पर जहाँ जहाँ घर बनना था, घर को जाने के लिए कहा। मेरा घर उस जगह चला गया। जैसे शुरू से वहाँ था।

चौराहे पर खड़े उस सिपाही ने मुझे घर जाकर इंतजार करने को कहा। घर पर तोता था। ट्रैफिक वाले की तरह वह सीटी बजाता। ट्रैफिक पुलिस वाले ने अपनी सीटी बजाना बंद कर दिया। आज की उसकी चाकरी का समय समाप्त हो गया। बदले में दूसरा ट्रैफिक वाला आ गया था।

चौराहे पर फिर एक बसगाड़ी जिसमें रेलगाड़ी के जैसे लोहे के पहिये लगे थे, सड़क की पट्टी पर आई। तो तीन कुली जो लाल कपड़े पहने थे, उनकी कमीज़ में पीतल के नंबर लिखे बिल्ले लटके थे, वे सामान उतारने लगे।

आधी-अधूरी तरह-तरह की कहानियाँ टोकनी में लिए मुफ्त़ में बाँटने घर-घर जाकर चिल्लाकर कहानी ले लो कहती, रोज सबेरे वह निकलती है। और, यह कहानी मैंने उसी से ली।

—— इसी संग्रह से

Kahaniyon Ka Kahaniyana | कहानियों का कहानियाँना

SKU: 9788119555291
₹249.00 नियमित मूल्य
₹224.10बिक्री मूल्य
मात्रा
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  • Author

    Vinod Kumar Shukla

  • Publisher

    Hind yugm

  • No. of Pages

    157

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