ढोला मारू दूहा काव्य की हस्तलिखित प्रतियाँ राजस्थान के पुस्तक भंडारों में बहुतायत से मिलती हैं। परंतु उनमें से अधिकांश दूहा- चौपाइयों में है। असली काव्य आरंभ में सबका सब दूहों में ही लिखा गया पर आगे चलकर बहुत से दूहे लोग भूल गए, केवल बीच बीच के कुछ दूहे बच रहे जिनका कथासूत्र बिलकुल छिन्नभिन्न था। इस कथासूत्र को मिलाने के लिये जैन कवि कुशललाभ ने संवत् १६१८ के लगभग चौपाइयाँ बनाई और उनको यहाँ के बीच में रखकर कथासूत्र ठीक कर दिया। आजकल अधिकांश प्रतियाँ इसी कुशललाभ की रचना की ही प्राप्त होती हैं। केवल दूहों के मूलरूप की प्रतियाँ कहीं भूले भटके ही मिलती हैं। इस प्राचीन मूलरूप की पाँच प्रतियाँ हमें बीकानेर राज्य में प्राप्त हुई। दोनों रूपों की कोई १७ प्रतियिाँ एकत्र करके हमने अपना [संपादन] कार्य आरंभ किया। इन प्रतियों की खोज में हमें जोधपुर, जयपुर, नागोर और बीकानेर राज्य के चूरू, सरदार शहर आदि भिन्न भिन्न स्थानों की यात्राएँ करनी पड़ीं।
ढोला मारू रा दूहा । Dhola Maru Ra Duha
Author
Narottam Das Swami,
Suryakaran Pareek,
Ramsingh
Publisher
Rajasthani Granthagar
No. of Pages
250