बगड़ावत देवनारायण महागाथा मौखिक रूप में ही गायी जाती रही है। प्रस्तुत प्रन्थ का आधार भी मौखिक ही रहा है और इसी रूप में इसे प्रकाशित किया गया है। इसे पढ़ते समय भाषा, इतिहास, घटना और रचनाकाल को लेकर कई प्रश्न पाठक के मन में पैदा होते हैं। मैं स्पष्ट कर देना चाहती हूँ कि यह शुद्ध लोकसाहित्य है और इसी दृष्टि से इसे देखा तथा परखा जाना चाहिए। लोकसाहित्य मौखिक रूप से पीढ़ी-दर-पीढ़ी चलता जाता है। इसलिए भाषा में समय, काल-स्थान के अनुसार निरन्तर परिवर्तन होता रहता है। यही कारण है कि यह महागाथा सदियों से गायी जाती रहने पर भी भाषा की दृष्टि से इतनी पुरानी प्रतीत नहीं होती है। भोपा गाता रहा और उसे टेपित कर लिया गया, फिर उसे लिपिबद्ध कर प्रकाशन का रूप दिया गया है।
Bagdawat Devnarayan Mahagatha | बगड़ावत देवनारायण महागाथा
Author
Rani Laxmi Kumari Chundawat
Publisher
Panchsheel Prakashan
No. of Pages
639