कुछ और नज्में गुलज़ार के गीत हिंदी फिल्मों की गीत परंपरा में अपनी पहचान खुद हैं, प्रवृ$ति के साथ उनके कवि का जैसा अनौपचारिक और घरेलू रिश्ता है, वैसा और कहीं नहीं मिलता। जितने अधिकार से गुलज़ार कुदरत से अपने कथ्य और मंतव्य के संप्रेषण का काम लेते रहे हैं, वैसा भी और कोई रचनाकार नहीं कर पाया है। न फिल्मों में और न ही साहित्य में। इस किताब में वे नज़्में शामिल हैं जिनमें से ज़्यादातर को आप इस किताब में ही पढ़ सकते हैं, यानी कि ये गीतों के रूप में फिल्मों के मार्फत आप तक कभी नहीं पहुँचीं। इसमें गुलज़ार की कुछ लंबी नज़्में भी शामिल हैं, कुछ छोटी और कुछ बहुत छोटी जिन्हें उन्होंने ‘त्रिवेणी’ नाम दिया है। इनको पढ़ना एक अलग ही तर्जुबा है।
कुछ और नज़्में | Kuch aur Nazme
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Gulzar
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