top of page
Product Page: Stores_Product_Widget

द्रौपदी ने कहा- 'श्रीकृष्ण चार कारणों से तुम्हें सदा मेरी रक्षा करनी चाहिये। एक तो तुम मेरे सम्बन्धी हो, दूसरे अग्निकुण्ड से उत्पन्न होने के कारण मैं गौरवशालिनी है, तीसरे तुम्हारी सच्ची भक्त हूं और चौथे तुम पर मेरा पूरा अधिकार है तथा तुम मेरी रक्षा करने में समर्थ हो।' तब श्रीकृष्ण ने भरी सभा में वीरों के सामने द्रौपदी को सम्बोधित करके कहा- 'कल्याणी! तुम जिन पर क्रोधित हुई हो, उनकी स्त्रियाँ भी इसी तरह रोयेंगी। थोड़े ही दिनों में अर्जुन के बाणों से कटकर खून से लथपथ होकर वे सब जमीन पर सो जायेंगे। मैं वही काम करूंगा, जो पाण्डवों के अनुकूल होगा। तुम शोक मत करो। मैं तुमसे सत्य प्रतिज्ञा करता हूँ कि तुम राजरानी बनोगी। चाहे आकाश फट जाय, हिमायल टुकड़े- टुकड़ें हो जाय, पृथ्वी चूर चूर हो जाय, समुद्र सूख जाय, परन्तु द्रौपदी! मेरी बात कभी झूठी नहीं हो सकती।' द्रौपदी ने श्रीकृष्ण की बात सुनकर टेढ़ी नजर से अर्जुन की ओर देखा। अर्जुन ने कहा- 'प्रिये! तुम रोओ मत। श्रीकृष्ण ने जो कुछ कहा है, वैसा ही होगा। उसे कोई टाल नहीं सकता।' धृष्टद्युम्न ने कहा- ने 'बहिन! मैं द्रोण को, शिखण्डी भीष्म पितामह को, भीमसेन दुर्योधन को और अर्जुन कर्ण को मार डालेंगे। जब हमें बलरामजी और भगवान् श्रीकृष्ण की सहायता प्राप्त है, तब स्वयं इन्द्र भी हमें नहीं जीत सकते। धृतराष्ट्र के लड़कों में तो रखा ही क्या है।'

महासती द्रौपदी | Mahasati Draupadi

SKU: 818036089X
₹400.00 Regular Price
₹340.00Sale Price
Quantity
Only 1 left in stock
  • Author

    Hari Singh

  • Publisher

    Devnagar Prakashan

  • No. of Pages

    200

No Reviews YetShare your thoughts. Be the first to leave a review.

RELATED BOOKS 📚 

bottom of page