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तुम मेरा एक काम और करना। मेरे पति के चरणों में मेरा प्रणाम कहना । मैनें उन्हें पत्र लिखने की बहुत चेष्ठा, की, परन्तु लिख न सकी। जो मुझे .. उनसे कहना था वह लिख न सकी। तुम उचित समझो तो मेरा समाचार उन्हें दे देना। उनसे कहना कि मैं उन पर क्रोध करके नहीं जा रही हूँ। मैंनें उन पर क्रोध नहीं किया, कभी नहीं करूंगी। उनके उपर जो अचल भक्ति थी, वह अब भी है और जब तक मिटटी. में न मिलूंगी, तब तक बनी रहेगी। उनके सहस्त्र गुणों को मैं कभी भूल न संकूंगी। मैं उनकी दासी हूं। जन्म भर के लिए स्वामी से विदा होकर जा रही

भाई, अब क्यों व्यर्थ इन सब बातों की चिन्ता कर रहे हो? तुम्हारा कोई दोष नहीं है। तुमने उनकी बिना राय अपने मन से कोई काम नहीं किया। जिसमें अपना दोष नहीं होता, उसके लिए बुद्धिमान अनुताप नहीं करते।

वह जानते थे कि सब दोष उनका ही है। उन्होने क्यों विष-वृक्ष के बीज को अपने हृदय से उखाड़ कर नहीं फेंका ? -

विषवृक्ष | Vishvraksh

SKU: 9788190478526
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₹170.00Sale Price
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  • Author

    Bankimchandra Chattopadyay

  • Publisher

    Pulkit Prakashan

  • No. of Pages

    228

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