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भारत दुर्दशा नाटक की रचना [1875] ई. में 'भारतेंदु हरिश्चन्द्र' द्वारा की गई थी। इसमें भारतेंदु ने प्रतीकों के माध्यम से भारत की तत्कालीन स्थिति का चित्रण किया है। वे भारतवासियों से भारत की दुर्दशा पर रोने और फिर इस दुर्दशा का अंत करने का प्रयास करने का आह्वान करते हैं। वे ब्रिटिश राज और आपसी कलह को भारत दुर्दशा का मुख्य कारण मानते हैं। तत्पश्चात वे कुरीतियाँ, रोग, आलस्य, मदिरा, अंधकार, धर्म, संतोष, अपव्यय, फैशन, सिफारिश, लोभ, भय, स्वार्थपरता, अतिवृष्टि, अनावृष्टि, अकाल, बाढ़ आदि को भी भारत दुर्दशा का कारण मानते हैं। लेकिन सबसे बड़ा कारण अंग्रेजों की भारत को लूटने की नीति को मानते हैं। अंग्रेजों ने अपना शासन मजबूत करने के लिये देश में शिक्षा व्यवस्था, कानून व्यवस्था, डाक सेवा, रेल सेवा, प्रिंटिंग प्रेस जैसी सुविधाओं का सृजन किया। पर यह सबकुछ अपने लिये। ऐसे समय में भारतेंदु हरिश्चन्द्र का भारत दुर्दशा नाटक प्रकाशित हुआ। उन्होंने लिखा रोअहू सब मिलिकै आवहु भारत भाई । हा हा! भारतदुर्दशा न देखी जाई ॥

भारत दुर्दशा | Bharat Durdasha

SKU: 9789390625512
₹95.00 Regular Price
₹85.50Sale Price
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Out of Stock
  • Author

    Bhartendu

  • Publisher

    Lokbharti Prakashan

  • No. of Pages

    144

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