मारवाड़ के शौर्यपुत्र दुर्गादास राठौड़ में अनेकानेक गुणों का समावेश था। निर्भिकता, स्वामिभक्ति, त्याग, निर्लोभ भावना, सत्यता, सहिष्णुता, शीघ्र निर्णय, संगठन, वीरता सर्वस्व न्यौछावर भावना. धर्मरक्षण, शरणागतत्सलता, स्वाभिमान एवं राष्ट्रीयता के साथ उच्च चरित्र एवं निष्काम भावना जैसे अनेक प्रण उसके सामने थे और किसी रियासत का राजा न होकर एक साधारण सामन्त के नाते दुर्गादास राठौड़ ने अपने जीवन में इन सभी गुणों को एक साथ निभाया, यही उसके चरित्र की विशेषता रही है। राजस्थान की भूमि वीर- प्रसविनी वसुन्धरा रही है जिसमें मरुधरा का विशेष महत्व है। इसी तरह दुर्गादास राठौड़ का औरंगजेब के खिलाफ किया गया दीर्घकालन संघर्ष उसे चरित्र का एक गौरपूर्ण अध्याय है।
औरंगजेब के अत्याचारों की कहानी से जनमानस संतप्त था, उस समय उसकी महान शक्ति से टक्कर लेकर भारतीय लोक जीवन केमनोबल को बनाये रखने में वीर दुर्गादास का तीस वर्षों का लम्बा संघर्ष अपने आप में एक आदर्श है। यह संघर्ष सत्ता हथियाने के लिए प्राणोत्सर्ग करने का संकल्प नहीं था वरन् अत्याचार के विरुद्ध अपने स्वत्व और स्वाभिमान की रक्षा करने के लिए अनुपम अनुष्ठान था।
वीर दुर्गादास राठौड़ का एक महत्तम शक्ति सम्पन्न बादशाह के खिलाफ किया गया दीर्घकालीन संघर्ष निष्काम भावना से मात्र प्रण-पालनार्थ राठौड़ की विजय ही नहीं हुई अपितु मुगल वंश की साम्राज्य सत्ता का ही पराभव प्रारम्भ हो गया था। इस दृष्टि से यह ग्रन्थ एक स्तुत्य प्रयास है। वास्तव में यह ग्रन्थ आज के राजनीतिज्ञों एवं कल की भावी सन्तान के लिए पठन एवं मनन योग्य है।
देशभक्त दुर्गादास राठौड़ | Deshbhakt Durgadas Rathore
Devisingh Mandawa