भारत के आजादी के परिवेश में आज तक देश जनता के जहन में यह भ्रम भूतपूर्व सत्ताधारी वरिष्ठ शासकीय नेतृत्व, राजनेताओं द्वारा सरकारी समाचार पत्रों द्वारा गले तक भर दिया गया है कि देश की आजादी के मुख्य कर्णधार काँग्रेस के सत्ताधारी नेहरू गांधीजी के त्याग बलिदान, सतत परिश्रम, संघर्ष के फलस्वरूप आजादी प्राप्त हुई। जब काँग्रेस पार्टी के स्थापना का उद्देश्य स्वतंत्रता सैनानियों, उग्र क्रान्तिकारियों के दमन की रोकथाम व क्रान्तिकारियों को जड़मूल से सजा देकर कुचलने का था और इसका प्रतिनिधित्व अंग्रेज-भक्त नरम दल के पश्चिमी संस्कृति, सभ्यता में पले-बड़े अंग्रेजों के विश्वसनीय वरिष्ठ नेता नेहरू गांधीजी संभाले हुए थे। काँग्रेस पार्टी का मुख्य उद्देश्य उग्र क्रान्तिकारी आन्दोलन को दमन करने का था।
भारत की स्वतंत्रता से कांग्रेस पार्टी का कोई लेना-देना नहीं था इसलिये सच्चे देशभक्त वास्तविक क्रान्तिकारी नेताओं की देश की आजादी स्वतंत्रता की मांग "स्वतंत्रता हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है" को अंग्रेज भक्त नेताओं ने मंच से नहीं उठाने में अपनी ऐडी चोटी का जोर लगा दिया। परंतु देश पर कुर्बान होने वाले असली देशभक्तों ने अपनी मातृभूमि के रक्षार्थ देश के स्वतंत्रता की समग्र क्रान्ति का आह्वान मंच पर से करके ही दम लिया। जिस पर लोकमान्य तिलक, वीर सावरकर, मदनमोहन मालवीय व अन्य वरिष्ठ काँग्रेसी नेताओं को काँग्रेस पार्टी से निष्कासित कर कठोर कारावास में बंद कर दिया गया। पंडित नेहरू जी का इस मामले में प्रति उत्तर यही था कि भारत की आजादी का मुद्दा हमारी और अंग्रेज सरकार के आपसी समझ का मामला है।
विभाजन के जख्म | Vibhajan Ke Jakham
Author
Krishnarav Mahurkar
Publisher
Apollo Prakashan
No. of Pages
159
























