‘हाकिम सराय का आख़िरी आदमी’ वर्तमान गाँवों की उस बदहाल स्थिति से परिचित कराता है, जहाँ विकास के नाम पर, परंपरागत उद्योग-धंधों को उजाड़ दिया गया है। जहाँ की भाईचारा को दरका दिया गया है। जहाँ लंगोटिये यार भी सांप्रदायिक विभाजन के शिकार हो गए हैं। जहाँ शिक्षा के व्यवसायीकरण ने ग़रीब मेधावी बच्चों के लिए दरवाज़े बंद कर लिए हैं। गाँव का सामंती वर्ग-चरित्र ग़रीबों पर अपनी अलग सत्ता क़ायम किए हुए है, जो कानून की सत्ता से अलहदा है। पारिवारिक रिश्ते सीझ रहे हैं। गँवई सरलता ने भृकुटी निकाल ली है। साँझ के सन्नाटे की शक्ल भुतहा नज़र आ रही है। ये कहानियाँ बदलती दुनिया में भुला दिए गए गाँवों का एक्सरे हैं।
हाकिम सराय का आख़िरी आदमी । Hakim Saray Ka Aakhiri Aadmi
SKU: 9789392820755
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Author
Subhash Chandra Kushwaha
Publisher
Hind Yugm
No. of Pages
192
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