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मुक्तिदायिनी अयोध्यापुरीका अप्रतिम माहात्म्य आर्षग्रन्थों विशेषकर विभिन्न पुराणोंमें प्राप्त होता है। इनमें भी स्कन्दपुराणके द्वितीय वैष्णवखण्डका अयोध्या-माहात्म्य (कुल १० अध्याय) एवं रुद्रयामलतन्त्रका अयोध्याखण्ड (कुल ३० अध्याय) विशिष्ट हैं। दोनों प्रकरण ग्रन्थोंके विषयोंमें ही नहीं अपितु श्लोकोंमें भी पर्याप्त साम्य है। परम्परामें इन दोनों प्रमाणभूत ग्रन्थोंका विशेष महत्त्व एवं आदर रहा है। अयोध्यापुरीमें जहाँ-जहाँ भी भगवान् की लीला स्थलियाँ अथवा अन्यान्य पौराणिक स्थान हैं, वे प्रायः इन्हींके द्वारा निर्धारित होते हैं।

भगवान् श्रीराघवेन्द्र सरकारकी परमपावन लीलास्थलीपर बने विक्रमादित्यकालीन जिस भव्य मन्दिरको यवनोंने ध्वस्त करके वहाँ विवादास्पद ढाँचा बना दिया था; वह एक सुदीर्घकालीन गौरवशाली ऐतिहासिक आन्दोलनके अनन्तर सर्वोच्च न्यायालयद्वारा अमान्य घोषित कर दिया गया तथा वहाँपर पुनः भगवान् श्रीरामललाके भव्य मन्दिरके निर्माणका मार्ग प्रशस्त हो गया। इस सम्बन्धमें सर्वोच्च न्यायालयमें रामजन्मभूमिके पौराणिक साक्ष्योंको विशेषकर उक्त दो ग्रन्थोंके प्रकाशमें ही सिद्ध करना सम्भव हुआ।

Ayodhya Mahatmya | अयोध्या महात्म्य

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  • Publisher

    Gitapress

  • No. of Pages

    528

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