“एक और कविता सुनोगी?” पीछे से ही उसने पुकारा। लड़की पीछे नहीं मुड़ी। बस आगे जाते हुए ही उसने बीच की उँगली दिखा दी। वह अभी दो कदम ही आगे बढ़ी थी कि स्टील के चमचमाते हथौड़े का एक जोरदार वार उसकी दायीं कनपटी पर पड़ा और वह झूलकर बेजान पुतले की तरह बायीं ओर गिर गयी। हत्यारे ने सुप्रिया के सिर से निकलने वाली खून की पतली धार को बहते हुए देखा और उससे अपना पैर बचाते हुए आगे बढ़ गया। उसने बहुत ही करीने से हथौड़ा अपने बैग में रखते हुए कहा -“डिसरिस्पेक्ट ऑफ़ आर्ट एंड पोएट्री इस द फर्स्ट साइन ऑफ़ अ डेड सोसाइटी। तुम्हें जो करना है करो! बट नेवर डिसरिस्पेक्ट एन आर्टिस्ट। कविता सुनने में क्या जाता है? छोटी-सी तो कविता थी।” कहते हुए फिर उसकी आवाज कठोर हुई। उसने लाश की तरफ एक आखिरी निगाह डाली, आसपास की स्थिति जाँची और बुदबुदाया - “तुम्हें यंत्रणा दिए बिना मारना अपूर्ण कर देता मेरे हृदय के एक भाग को बहुत बेला निंद्रा से उठ बैठता कामना के ज्वर से तप्त किसी ऊँचाई पर ले जाकर तुम्हें धक्का देना कितना उत्तेजक होता और जो कोलाहल होता पश्चात् उसके उसमें कितना संगीत होता प्रेयसी”
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