यह मान्यता भी प्राचीन ग्रन्थों में स्थापित मिलती है कि निरन्तर युद्ध लड़ते रहने वाले ऐसे वीर हमारे यहां हुए हैं कि वे रणस्थल नहीं छोड़ते, सिर कट जाने पर भी युद्ध करते रहते हैं। जीते जी तो युद्धरत रहते ही होते हैं ऐसे वीर किन्तु सिर गिर जाने पर भी शस्त्र न छोड़कर उससे शत्रुओं का संहार कर देते हैं। बिना सिर वाले (नीचे वाले ) शरीर को संस्कृत में 'कबन्ध' कहा जाता है। राहु और केतु की कथा सुविदित है, राहु केवल सिर हैं, केतु नीचे वाला शरीर। रामायण, महाभारत, रघुवंश आदि संस्कृत ग्रन्थों के बाद प्राकृत, अपभ्रंश, लोकभाषाओं के आदि के काव्यों में भी ऐसे वर्णन हमें इसी कारण प्राप्त होते हैं जिनमें युद्ध में (अथवा राहु केतु वाली किसी अन्य घटना के फलस्वरूप) कबन्ध अर्थात् धड़ भी कुछ समय तक लड़ता रहा अथवा प्राण सहित रहा। बाद में ऐसे योद्धाओं के अभिलेख भी रचे गए जिन्होंने शिरच्छेद के बाद भी युद्ध किया। ऐसे योद्धाओं को जो नाम दिए गए उनमें एक नाम है 'जुझार या जूंझार'। जुझारू का अर्थ होता है योद्धा यह सुविदित है। ऐसे योद्धाओं की जो रोमांचक कथाएं रामायण, महाभारत आदि से लेकर मध्यकाल काव्य ग्रन्थों और इतिहास ग्रन्थों में भी उपलब्ध होती है वे दिल दहला देने वाली होती है यह तो स्पष्ट ही है। ऐसे योद्धाओं में से अनेकों को समाज देवता मानकर पूजने भी लगा था। कुछ योद्धा लोकदेवताओं के मन्दिर, पूजास्थल या स्मारक आज भी देखे जा सकते हैं।
राजस्थान में ऐसे जुझारों की गाथाएँ कुछ शताब्दियों से पाई जाती हैं। आज के प्रबुद्ध पाठक की यह जिज्ञासा स्वाभाविक है कि इस बात की तलाश की जाए कि कबन्धों या जुझारों की ऐसी प्रमुख गाथाएं कहां हैं, उनका क्या स्वरूप है, क्य
राजस्थान के वीर जूझार | Rajasthan Ke Veer Jujhar
Author
Dr. Raghunath Prasad Tiwari 'Umang'
Publisher
Rajasthani Granthagar
No. of Pages
222