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अकबर और तुलसीदास भारतीय इतिहास के दो समकालीन पात्र हैं, जिन्हें अपनी कल्पना के केन्द्र में रखकर असग़र वजाहत ने महाबली नाटक को रचा है। जहाँ एक ओर गोस्वामी तुलसीदास बनारस के तट पर बैठ अपना सारा समय ध्यान, भक्ति और साहित्य में लगाते थे वहीं मुगल सल्तनत के बादशाह अकबर चाहते थे कि गोस्वामी तुलसीदास उनके दरबार की शोभा बढ़ाये। आखिर वे ठहरे महाबली जो जिसे चाहे आदेश दे सकते थे जिसका पालन करना उनकी प्रजा का फर्ज था। लेकिन तुलसीदास अकबर के अनुरोध को मानने से इनकार कर देते हैं और राजसत्ता और कलाकार की स्वाधीनता का यह द्वंद्व ही इस नाटक का विषय है। तीव्र आवेग और चरम नाटकीयता से भरपूर, महाबली असगर वजाहत के नाट्य लेखन का नया सोपान है। महाबली सम्राट अकबर का प्रिय संबोधन था लेकिन जब गोस्वामी तुलसीदास सम्राट का कहना मानने से इनकार करते हैं तो उनके महाबली संबोधन पर प्रश्नचिह्न लग जाता है। विख्यात साहित्यकार असग़र वजाहत बहुआयामी व्यक्तित्व हैं, जिनके अनेक उपन्यास, नाटक, निबंध, कहानी-संग्रह और यात्रा-वृत्तांत प्रकाशित हो चुके हैं। उनकी अन्य लोकप्रिय पुस्तकें हैं - बाक़र गंज के सैयद, सबसे सस्ता गोश्त, सफ़ाई गन्दा काम है, जिस लाहौर नईं देख्या ओ जम्या ई नईं, गोडसे /गांधी.कॉम, भीड़तंत्र, अतीत का दरवाज़ा और स्वर्ग में पाँच दिन।

महाबली । Mahabali

SKU: 9788194131823
₹235.00 Regular Price
₹199.75Sale Price
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Out of Stock
  • Author

    Asgar Wajahat

  • Publisher

    Rajpal & Sons

  • No. of Pages

    96

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