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मनुष्य के जन्म के समय ही उसकी जाति धर्म आदि तय हो जाते हैं। उस समय ना तो वह अपनी जाति के बारे में जानता है और ना ही अपने धर्म के बारे में। मनुष्यों के द्वारा ही धर्म और जातियों को बनाया गया। हिन्दू धर्म में कर्म को प्रधानता दी गई है। यदि आप पुश्तैनी कर्म को छोड़कर अन्य कर्म अपनाते है तो उसी क्षण आपकी जाति बदल जायेगी। यह कर्म ही तो है जो नये-नये समाज का निर्माण करते आये है। वैश्य, क्षत्रिय, ब्राह्मण, शूद्र आदि का निर्माण कर्म के आधार पर ही तो हुआ है एवं इस कार्य प्रधान हिन्दू धर्म में किसी जाति के निर्माण में किसी दूसरी जाति या व्यक्ति का कोई दोष नहीं है। यह तो अमूक जाति के महापुरुषों के कर्मों की देन है और आज उन्हीं महापुरुषों के वंशज वर्तमान जाति में निवास करते हैं। भारत देश में हिन्दू धर्म की प्रधानता है। हिन्दू धर्म में पहले तो कर्म के आधार पर वर्ण और जातियाँ तय होती थी लेकिन अब हिन्दू धर्म का विभाजन दलित और स्वर्ण के रूप में उभर कर सामने आया है। आज़ादी के बाद नये वर्गों सामान्य वर्ग, अन्य पिछड़ा वर्ग, अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजातियाँ आदि का निर्माण हिन्दू धर्म के लिए घातक साबित हुआ है। कोई भी जाति दलित नहीं है, उनके कर्म ही उनको दलित बनाते हैं। कोई भी जाति स्वर्ण नहीं है, उनके कर्म ही उनको पूजनीय बनाते हैं। इस देश में कोई दलित नहीं कोई स्वर्ण नहीं है। राजनीति ने हिन्दू समाज को बिखेर दिया है। जातियों का जब मैनें अध्ययन किया तो चैकाने वाले तथ्य सामने आये। ...

मेर क्षत्रिय जाति का इतिहास | Mer Kshatriya Jati Ka Itihas

SKU: 9789391446765
₹300.00 Regular Price
₹255.00Sale Price
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  • Author

    Gajendra singh Yadav

  • Publisher

    Rajasthani Granthagar

  • No. of Pages

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