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मेरी आँखों के आगे एक बहुत महीन धागों का बुना जाल सा बिछ गया-एक-एक करके कितने ही चेहरे उस जाल में उलझते गुलझते जाते । गुस्से से लाल माँ की सूरत, गर्हणा से सिकुड़ा पिता जी का तेवर ! दीदी की भर्त्सना। अजय का सहानुभूतिमय जिज्ञासु पर ख़ामोश चेहरा। क्या मैं कभी किसी को माफ नहीं कर सकी! और एकबारगी ही मैंने अपने आप से कहा-अब मैंने यह नाता तोड़ा।'... यह मैंने नाता तोड़ा उपन्यास की नायिका रितु का आत्मस्वीकार है। एक भरे पूरे घर में रहनेवाली रितु के साथ किशोरावस्था में हुई 'दुर्घटना' ने उसके पूरे अस्तित्व को जैसे भंग कर दिया। वर्जनाओं, चुप्पियों और संकेतों की जटिल दुनिया में बड़ी होते-होते रितु जाने कैसे-कैसे कच्चे-पक्के धागों में उलझती गयी। भारत से अमरीका जाने के बाद भी रितु की ये उलझनें कम नहीं हुईं। अपने प्रेमी पति के साथ अभिशप्त अतीत से आंशिक मुक्ति का वर्णन अत्यन्त मार्मिक है। सुषम बेदी का यह उपन्यास नारी मन की उखाड़पछाड़ का प्रभावी चित्रण है। रिश्तों और परिस्थितियों के बवंडर में कभी सूखे पत्ते सा उड़ता जीवन और कभी अपनी जड़ों से जुड़ता जीवन-जीवन के दोनों पक्षों का सटीक वर्णन सुषम बेदी ने किया है।

मैंने नाता तोड़ा वस्तुतः नातों-रिश्तों को यथार्थ

के प्रकाश में देखने का उपक्रम है।

मैने नाता तोड़ा | Maine Nata Toda

SKU: 9788126318568
₹550.00 Regular Price
₹467.50Sale Price
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Only 1 left in stock
  • Author

    Susham Bedi

  • Publisher

    Bhartiya Gyanpeeth

  • No. of Pages

    243

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