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मृणालिनी और हेमचंद्र एक-दूसरे को असीम प्रेम करते हैं। उनके पवित्र प्रेम को धर्म, समाज और प्रपंच मिलकर बार-बार छलने का प्रयास करते हैं, लेकिन उनका प्रेम अविचलित रहता है, अडिग रहता है।

मृणालिनी और हेमचंद्र के अपार प्रेम को प्रकट करते हुए बैंकिमचंद्र चटर्जी लिखते हैं-

"मृणालिनी और हेमचंद्र दोनों कितनी ही व्यर्थ की बातें अति प्रयोजनीय ढंग से तरह-तरह के आग्रह के साथ कहने-सुनने लगे दोनों ने कितनी ही बार उमड़ रहे आंसुओं को बड़ी कठिनाई से रोका- दोनों कितनी ही बार एक-दूसरे के मुख की ओर देखकर निरर्थक मधुर हंसी हंसे उस हंसी का अर्थ यह था कि हम कितने सुखी हैं।

जब चिड़ियां प्रभात के उत्सव की सूचना देती हुई चहक उठीं. तब कितनी ही बार दोनों ने विस्मित होकर मन में सोचा-'अरे आज रात्रि इतनी जल्दी क्यों बीत गई? कैसे बीत गई?" उस नगर के भीतर यवन-विप्लव का जो कोलाहल उच्छवसित सागर की लहरों की गर्जना की तरह उठ रहा था. वह हेमचंद्र मृणालिनी के हृदयसागर की लहरों के शोर में डूब गया।”

राष्ट्र और प्रेम दोनों को खो चुके हेमचंद्र ने न केवल मृणालिनी का प्रेम जीता, बल्कि अपने राष्ट्र-प्रेम और धर्म-प्रेम को भी जीत लिया, मगर कैसे?

मृणालिनी । Mrinalini

SKU: 9789389931174
₹150.00 Regular Price
₹135.00Sale Price
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Out of Stock
  • Author

    Bankimchandra Chatarjee

  • Publisher

    Fingerprint

  • No. of Pages

    176

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