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जॉन से राब्ता बनने का एक अजीब सा किस्सा है। सौभाग्यवश में दुनिया भर में जिन साहित्यिक रूप से महत्त्वपूर्ण महफिलों में उठता-बैठता हूँ, यकीनन मेरे आस-पास से जॉन के कई शे'र पहले भी गुज़रे होंगे। लेकिन जब मैंने एक मिसरे में 'न वो चाँदनी रही, न वो चोंदना रहा' सुना तो मैं वहीं ठहर गया। क्योंकि 'चाँदना' शब्द सिर्फ पश्चिमी उत्तर प्रदेश के एक खास अंचल में इस्तेमाल होता है। बचपन में दादी के मुँह से सुनने के बाद यह शब्द इसी शे'र में सुना। पाकिस्तान के कई शायरों के बीच इस शायर के अनूठे प्रयोग ने मन में खलबली मचा दी। लगा कि जॉन को और ज़्यादा जानना चाहिए।

उनको जानने के क्रम में पहली सीढ़ी पर पता चला कि जॉन मूलतः अमरोहा के हैं। रुहेलखण्ड, मेरठ कमिश्नरी, मुज़फ्फरनगर, बुलन्दशहर, सहारनपुर का जो इलाका है, उसका जो इलाकाई कहन है, उसको जॉन ने लगातार अपनी शायरी में ढाला है :

किसी से अहद-ओ-पैमां कर न रहियो

तू इस बस्ती में रहियो, पर न रहियो

सफर करना है आखिर दो पलक बीच

सफर लम्बा है, वे-विस्तर न रहियो

मैं जो हूँ, जॉन एलिया हूँ । Main Jo Hoon Jaun Elia Hoon

SKU: 9789350728833
₹299.00 Regular Price
₹269.10Sale Price
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  • Author

    Jaun Elia

  • Publisher

    Vani Prakashan

  • No. of Pages

    155

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