भर्तृहरिकृत नीतिशतक की मूलरचना संस्कृत में है, उसका सरलतम हिन्दी व अँगरेजी अनुवाद एक साथ पुरोहित गोपीनाथ द्वारा किया गया जिसका प्रकाशन सन् 1896 में किया गया। ऐसी अमर कृति का अनुवाद कर पुरोहित गोपीनाथ स्वयं अमर हो गए, फलतः वन्दनीय है। इतने वर्षों के पश्चात् लोक संस्कृति शोध संस्थान नगरश्री चूरू के कार्यकारी अध्यक्ष डॉ. शेरसिंह बीदावत ने भर्तृहरि रचित नीतिशतक को राजस्थानी भाषा के गद्य व पद्य में अनुवाद कर पुरोहित गोपीनाथ द्वारा किए गए सप्रयासों को और वर्द्धमान किया है। भर्तृहरि राजा विक्रमादित्य के भाई थे। इनके द्वारा रचित तीन शतक- श्रृंगारशतक, वैराग्यशतक और नीतिशतक प्रसिद्ध हैं। इनके जीवन वृत्तान्त के सम्बन्ध में भाँति-भाँति की बातें प्रचलन में है। कई जगह लिखा मिलता है कि अपनी स्त्री की दुश्चरित्रता से दुःखी होकर भर्तृहरि राज-पाट छोड़कर वनवासी हो गये, तो कई विद्वानों का मत है कि सांसारिक जीवन की कुछ हृदय विदारक घटनाओं से उत्पन्न दुःख और वेदना से अत्यन्त व्याकुल हो जाने से उनका सांसारिक मोह-माया के प्रति हृदय परिवर्तन हो गया और उन्होंने राज-पाट छोड़कर वैराग्य धारण कर लिया। राजस्थानी लोकगीत में प्रचलित दृष्टांत भर्तृहरि का वैराग्य धारण करने का कारण उनके जीवन से संबंधित उल्लिखित दूसरी घटना के सन्निकट है जिसे प्रामाणिक माना जा सकता है। सारंगी पर लोकगीत गाते जोगी जाति के गायक घर-घर फिरकर भर्तृहरि के संबंध में गीतों के माध्यम से कथा सुनाते थे।
Bhartrharikrit Nitishatkam | भर्तृहरिकृत नीतिशतकम्
Author
Dr. Shersingh Bidawat
Publisher
Lok Sanskriti Shodh Sansthan
No. of Pages
128