कोरोना की प्रथम लहर से पहले का दौर था। देश तमाशे की चपेट में था। जहाँ एक तरफ़ विश्व की बाक़ी सरकारें कोरोना से बचाव के उपायों के बारे में विमर्श कर रही थी, एक्शन ले रही थी, वहीं हमारी सरकार एक राज्य में विधायकों के जोड़-तोड़ कर अपनी पार्टी की सरकार बनाने की पुरज़ोर कोशिश में लगी हुई थी। और फिर अचानक, एक दिन एलान हुआ रूह कँपा देने वाले संपूर्ण लॉकडाउन का। पूरा देश और उसके लोग छोटे- छोटे पिंजरों में क़ैद हो गए। लॉकडाउन के दौरान ना सिर्फ़ घरों गाँवों और शहरों की तालाबंदी कर दी गई थी, बल्कि राज्यों की सरहदों को भी सील कर दिया गया था और इसका एहसास मुझे तब हुआ जब मुझे पता चला कि मैं उस पार अपने दोस्तों से मिलने नहीं जा सकता। मैं मानसिक और भावनात्मक रूप से अपाहिज महसूस कर रहा था।जब सब कुछ ठप्प पड़ गया था, तब उम्मीद ज़िंदा रखने के लिए नज़र सिर्फ़ रिश्तों की तरफ़ घूमती थी। रिश्ते वो नहीं जो आपको मिले, रिश्ते वो जिन्हें आपने बनाया। फोन और वीडियो कॉल अपनी जगह पर थे, लेकिन उस वक़्त आमने-सामने मिलने की जो हूक थी, उसे शब्दों में बयां नहीं किया जा सकता था। इसी हूक से उपजे हमारे उपन्यास के मुख्य किरदार हिमांशु और नमिता। विकासशील भारत की तस्वीर हिमांशु और नमिता, देश के विकास के चक्कर में हिमांशु और नमिता का व्यक्तिगत विकास कहीं पीछे छूट गया था। उनके बचपन का प्यार लॉन्ग डिस्टेंस की पटरी पर जैसे-तैसे चल रहा था, लेकिन अब दोनों के दिल में अपना डिस्टेंस कम से कमतर करने की कसक उठने लगी थी। दोनों अपने बीच से स्क्रीन नाम का पर्दा हटा देना चाहते थे। वो चाहते थे कि उनकी आवाज़ बिना किसी माइक्रोफ़ोन की मदद के, सीधी कानों में जाये। जब दोनों एक दूसरे से मिलने ही वाले थे कि तभी लॉकडाउन लग गया और फिर उस कसक ने जन्म दिया इस कहानी को। उस दौर में सरकार ने लॉकडाउन के दौरान शारीरिक ज़रूरतों का ध्यान रखने की कोशिश की, लेकिन वो मानसिक और भावनात्मक ज़रूरतों पर ध्यान देना भूल गए। ऐसे में यह कहानी हिमांशु और नमिता के प्रेम संबंध के ज़रिये उस दौर को फिर से देखने की कोशिश करती है, ताकि हमें फिर से वो दौर कभी देखना ना पड़े।
Balliyan | बल्लियाँ
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Author
Swapnil Jain
Publisher
Pankti Prakashan
No. of Pages
208

















