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बाबत तेरा देस में आख्यान है स्त्री के उन दुखों का, जो अपने ही घर के असुरक्षित अमेय किले में छेद है। इसकी रेहलगी, बजबजाती जन्धी सुरंगों में कहीं पिता, तो कहीं भाई; कहीं ससुर, तो कहीं-कहीं पति के रूप में एक आदमखोर भेड़िया घात लगाए बैठा है; और जिसके हरेक नाके पर तैनात है एक पहरेदार अपने हाथ में थामे धर्म-ग्रन्थों के उपदेशों एवं तथाकथित आदेशों की धारदार नुकीली बरछी।

बाबत तेरा देश में इसी किले की पितृसत्तात्मक इंट-गारे से चिनी मजबूत दीवारों और महराबों के बीच दादी, जेतूनी, असगरी, जुम्मी, पारो, शकीला, शगुफ्ता, समीना, जैनव मेना और मुमताज के मौन प्रतिवाद है-वह भी बाहर की दुनिया से नहीं बल्कि हाजी चांदमल दीन मोहम्मद हनीफ, फोजी, जगन प्रसाद, मुबारक अली तथा कलन्दर जैसे अपने ही घरों के पहेरुओं से।

यह विमर्श नहीं है समृद्ध संसार की स्त्रियों की उस मुक्ति का, जो उन्हें कभी और कहीं भी मिल सकती है, अपितु यह अपनी निजता और शुचिता बचाए रखने का लोमहर्षक उपाख्यान भी है। लोक-जीवन और किस्सागोई की तरंगों से लबरेज यह ऐसे जीवन्त समाज का आख्यान भी है, जो पाठकों को कथा-रस के विभिन्न आस्वादों तथा अपने अभिनव कला-पक्ष से मुठभेड़ कराता, रेत-माटी से सने पाँवों को खेतों की ऊबड़-खाबड़ मेड़ों पर, जेठ की तपती धूप में चलने जैसा अहसास दिलाता है। काला पहाड़ के बाद भगवानदास मोरवाल का यह उपन्यास बाबल तेरा देस में निःसन्देह उस अवधारणा को तोड़ता है कि आज़ादी के बाद मुस्लिम परिवेश को आधार बनाकर उपन्यास नहीं लिखे जा रहे हैं।

Babal Tera Des Me | बाबल तेरा देस में

SKU: 9788126719037
₹499.00 Regular Price
₹449.10Sale Price
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  • Author

    Bhagwandas Morwal

  • Publisher

    Radhakrishan Prakashan

  • No. of Pages

    484

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