अगर बचपन के बीते दिनों को कहानियों में उतारा जाए, तो क्या होगा? जो लोग बीते दिनों में हमारे जीवन का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा रहे, वे अचानक कहाँ ग़ायब हो जाते हैं? शहरों से हमारा रिश्ता कैसे बनता है? जिन गलियों और मोहल्लों में हम जवानी की दहलीज़ पर पहुँचे, क्या वो गलियाँ भी बूढ़ी आँखों से हमारा इंतज़ार करती हैं?
‘पटना का सुपरहीरो’ ऐसे ही सवालों के जवाब खोजती है। यहाँ पटना सिर्फ़ शहर भर नहीं है, बल्कि एक ज़िंदा किरदार की तरह सभी कहानियों के बैकग्राउंड में मौजूद है।
इस कहानी-संग्रह में हम ऐसे किरदारों से मिलते हैं जो बचपन की एक शाम कहीं खो गए। इन कहानियों में, शायद वे एक जीवन जी रहे हों। यहाँ हमारे दोस्त संतरे और आम का पेड़ भी हैं। यहाँ बचपन की मासूमियत भी है और अपराधबोध भी। सबसे पहला आश्चर्य है, तो सबसे दुखद यादें भी। इन छः कहानियों में हम सभी के जीवन का एक ख़ास हिस्सा क़ैद है, जिसे एक बार पलटकर ज़रूर देखा जाना चाहिए।
Patna Superhero | पटना सुपरहीरो
Author
Nihal Parashar
Publisher
Hind Yugm
No. of Pages
181
























