सन् 1980 में सुप्रसिद्ध बौद्ध विद्वान कृष्णनाथ यूनिवर्सिटी ऑफ़ विस्कॉनसिन के निमंत्रण पर बौद्ध विद्वानों के एक सम्मेलन में हिस्सा लेने अमेरिका गये थे। यह यात्रा भी अनेकानेक अकादमिक उद्देश्य से की गयी विदेश यात्राओं की तरह विस्मृति को प्राप्त होती यदि इसे कृष्णनाथ जैसे मनीपी से कमतर कोई व्यक्ति कर रहा होता।
अमेरिका जाते हुए कृष्णनाथ ने इस यात्रा में इटली, पारी (पेरिस), इंग्लैंड में केवल पड़ाव ही नहीं डाला, बल्कि इन जगहों में बौद्ध धर्म की अपनी जिज्ञासा से जुड़े स्थानों, संग्रहालयों, पुस्तकालयों का विस्तृत जायजा भी लिया। इन संग्रहों में कौन-सी विलुप्त प्रायः सामग्रियाँ अभी भी पुनः प्राप्त करके वापस अपनी जीवित वौद्धिक परम्परा में पुनर्वासित की जा सकती हैं, विशेषकर तिब्बती बौद्ध ग्रंथ, जो कम्युनिस्ट चीन के शासन में योजनावद्ध तरीके से नष्ट किये जाते रहे हैं, इसका कुछ लेखा-जोखा इन नोटबुकों में दर्ज है।
एक समय में अधिकांश पृथ्वी को अभिभूत कर देने वाले बौद्ध धर्म का आज भिन्न देशों की परम्पराओं, वे पूर्वी हों या पश्चिमी, में क्या स्वरूप है, इसका एक खाका उनकी सां फ्रांसिस्को, लॉस एंजेलस की डायरियों को पढ़ते हुए मिलता है। जापान, हांगकांग, थाईलैंड के मठों, विहारों में उनके ध्यान-पड़ाव कृष्णनाथ को एक अद्भुत आभा देते हैं। कहीं वे भिक्षु जान पड़ते हैं, कहीं वीतरागी। यह पुस्तक एक बौद्ध मनीषी की पृथ्वी-परिक्रमा का सुन्दर दस्तावेज तो है ही, गम्भीर जिज्ञासुओं को यात्राएँ कैसे करना चाहिए, इसका उज्ज्वल उदाहरण भी।
पृथ्वी परिक्रमा । Prithvi Parikrama
Author
Krishnanath
Publisher
Vani Prakashan
No. of Pages
192
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