रामायण को लोकभाषा में लिखकर साधारण जनमानस के हृदय में स्थान बनाने वाले तुलसीदास अपनी अद्भुत मेघा और काव्य प्रतिभा के लिए भक्तिकाल के सबसे बड़े कवि माने गए। उन्होंने परम्परा के दायरे में रहकर अपने समय और समाज के लिए उचित भक्ति पद्धति और दर्शन का विकास किया जिसमें समन्वय की अपार चेष्टा थी। अपने समय के विभिन्न मत-मतान्तरों के संघर्ष और प्रतिद्वंद्विता का उन्होंने अपनी रचनाओं में शमन और परिहार किया। प्रस्तुत चयन में तुलसीदास के यश का आधार मानी जाने वाली कृतियों रामचरितमानस, विनय पत्रिका, कवितावली, गीतावली, दोहावली और बरवै रामायण से चुनकर उनके श्रेष्ठ काव्य को प्रस्तुत किया गया है। इनमें तुलसीदास की काव्य कला की विशेषताओं को देखा जा सकता है जहाँ कविता लोकप्रिय होकर जनसामान्य का कंठहार बनी और शास्त्र की कसौटी पर भी खरी उतरी।
इस चयन का संपादन डॉ. माधव हाड़ा ने किया है जिनकी ख्याति भक्तिकाल के मर्मज्ञ विद्वान के रूप में है। उदयपुर विश्वविद्यालय में प्रोफेसर और हिन्दी विभाग के अध्यक्ष रहे डॉ. हाड़ा मध्यकालीन साहित्य और कविता के विशेषज्ञ हैं। वह इन दिनों भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान, शिमला में फैलो हैं।
तुलसीदास | Tulsidas
Author
Madhav Hada
Publisher
Rajpal & Sons
No. of Pages
125
























