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राजा माने सो रानी। बादल बरसे सो पानी। तो भगवान भले दिन दे कि एक था जाट। गाँव से थोड़ी दूर वह एक ढाणी में रहता था। पीढ़ियों से खेती बाड़ी का धन्धा। पर इस बेभरोसे के धन्धे में कोई खास बरकत नहीं हुई। जैसे-जैसे गाड़ी घिसट रही थी। पेट में गाँठें और गले में फंदा । खेत-खलिहान के झंझट से पीत के अलावा कभी मुक्ति नहीं मिलती थी। इसलिए रामनाम और भजनभाव में मन लगाना पड़ता था। वीणा के तारों की झनकार से हृदय में अदृश्य सुख की हिलोर उठती थीं। चौधराइन के गुजरने के बाद चौधरी का मन घर-गृहस्थी से बिलकुल उचट गया। दूसरी औरत बिठाने के लिए नाते-रिश्तेदारों ने बहुत कहा, पर चौधरी नहीं माना। हर बार यही जवाब देता कि एक बार पछताया वही बहुत है। पहले तो अजाने खाई में गिरा। अब जानते-बुझते गलती नहीं करेगा। अपने सुख के लिए चार नन्हे बच्चों को सौतेली माँ के हवाले कैसे करे! सुख का तो फक्त नाम ही सुना है दुःख और अभाव मिलकर भुगतें अब तो यही सबसे बड़ा सुख है। वीणा को जीवन साथी बनाया है सो मरते दम तक साथ निभाएगा।

चौधराइन की चतुराई । Choudhrain Ki Chaturai

SKU: 9789385593970
₹250.00 Regular Price
₹212.50Sale Price
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  • Author

    Vijaydan Detha

  • Publisher

    Rajasthani Granthagar

  • No. of Pages

    124

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