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"इन पर्चियों को मैं ताश के पत्तों की तरह फेंटू और उन्हें मेज़ पर फैला दूँ । दरअसल यही तो थी, फ़िलहाल मेरी ज़िन्दगी ? सो मेरी सारी हदें, इस वक्त, करीब इन बीस असंगत नाम और पतों तक ही सीमित थीं जिनके बीच में, महज़ एक कड़ी था? और क्यों ये ही सारे नाम थे बजाय किन्हीं और नामों के? क्या साम्यता थी, मुझमें और इन नामों और जगहों में? में किसी ख़्वाब में था, जहाँ यह मालूम होता है कि जब खतरा सिर पर मँडराने लग जाय तब हम किसी भी पल जाग सकते हैं। अगर मैं यह तय कर लेता, मैं इस मेज़ को छोड़ कर उठ जाता, तब सब कुछ बर्बाद हो जाता, सब कुछ शून्य में विलीन हो जाता। जो बाकी रह जाता, वह होता सिर्फ़ टीन का एक बक्सा और कागज़ के कुछ टुकड़े, जिन पर घसीटे अक्षरों में, लोगों और जगहों के नाम लिखे हुए थे, जिनके किसी के लिए भी कोई मायने नहीं होते।"

गुमनामी से परे | Gumnami Se Pare

SKU: 9789386534644
₹185.00 Regular Price
₹166.50Sale Price
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  • Author

    Patrick Modiano

  • Publisher

    Rajpal & Sons

  • No. of Pages

    144

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