'काला पहाड़' हिन्दी में अब तक ' अकथित की कथा' है। यहाँ हरियाणा के एक पिछड़े इलाके 'मेवात ' को कथा कही गई है। यह कथा हिन्दी के 'नागर' स्वाद को बेमता कर देती है। यह निविड़ स्थानीयतावादी कथा है। हिन्दी के चालू कथा संसार में जो शुभ विकेन्द्रण हो रहा है, यह उसका एक अनूठा दावा है। इसमें मेवात का एक 'लोकपाठ' है। यह मेवात की 'बात' है। हिन्दी में आधुनिकीकरण ने स्थानीय 'पहचानों' को पिछले पचास सालों में पोंछा है। यह क़िस्सा उसकी बहाली है। चिढ़नेवाले चिढ़ें, लेकिन 'अकथित का कथन' करने की बात उत्तर-आधुनिक चिन्तक फ्रांसुआ ल्योतार ने इसीलिए कही है कि जिद से कहकर ही हाशिए पर फेंक दी गई पहचानें प्रत्यक्ष की जा सकती हैं।
- सुधीश पचौरी
काला पहाड़ | Kala Pahad
SKU: 9788171198108
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Out of Stock
Author
Bhagwandas Morwal
Publisher
Radhakrishan Prakashan
No. of Pages
466
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