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प्रतिष्ठित रचनाकार डॉ. फणीश सिंह द्वारा सम्पादित कहानी संकलन 'कितने हिन्दुस्तान' एक बार जो अपने शीर्षक से ध्यान खींचता है और प्रकारान्तर से चेतावनी देता है कि हम अपने इतिहास से सबक सीखें और देश को किसी भी तरह खण्डित न होने दें। सन् 1947 में लम्बे संघर्ष के बाद मिली स्वतन्त्रता के पीछे बहुत से पीड़ा भरे, अवसादग्रस्त प्रसंग और सन्दर्भ हैं जो विभिन्न रचनाकारों की कहानियों में उभर कर आये हैं। इन कहानियों का पाठ तथा पुनःपाठ निरन्तर होना चाहिए ताकि वर्तमान और आगत पीढ़ियाँ जान सकें कि हम भारतवासियों ने कितनी कुर्बानियों के बाद आजादी का सवेरा देखा। यह आजादी एक अनमोल उपलब्धि है। जितनी मेहनत इसे हासिल करने में लगी है, उससे कई गुनी मेहनत इसे बनाये और बचाये रखने में लग सकती है। न जाने कितनी सभ्यताएँ उगीं, विकसित हुई और विनष्ट भी हो गयीं। कई देश स्वाधीन होने के बाद फिर पराधीनता की चपेट में चले गये। विभाजन केन्द्रित रचनाएँ उन स्थितियों की जांच-पड़ताल करती हैं जिनमें फँस कर कुछ व्यक्ति मनुष्यता से कई पायदान नीचे तो कई व्यक्ति मनुष्यता से कई पायदान ऊपर हो जाते हैं। ये सभी कहानियाँ हिन्दी और हिन्दुस्तानी जगत की सुपरिचित रचनाएं हैं जिनमें समय और समाज की करवट महसूस की जा सकती है।

संघर्ष की गति कभी एक आयामी नहीं होती। उसमें समय, समाज के कई अहम सवालों की उठापटक होती है। राजनीतिक समीकरणों के चलते संघर्ष को लम्बा खींचा जाता है जिससे अन्ततः नुकसान जनता का ही होता है। आम आदमी सबसे ज्यादा तकलीफ़ पा जाता है और सबसे ज़्यादा खमियाजा भी उसे ही उठाना पड़ता है। वही बेघर होता है जैसे मोहन राकेश की कहानी 'मलबे का मालिक' का गनी था, अज्ञेय की 

कितने हिन्दुस्तान | Kitne Hindustan

SKU: 9789387024328
₹595.00 Regular Price
₹505.75Sale Price
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Out of Stock
  • Author

    Dr. Phanish Singh

  • Publisher

    Vani Prakashan

  • No. of Pages

    320

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