मैं जब नहीं लिखूँगा, तब भी खुद को चुपचाप लिखता हुआ ही मिलूँगा। वह लिखना, हो सकता है, मेरी पहचान मेरी ज़बान का न हो; ख़यालों, आकारों, चेहरों को किन्हीं सलीक़ों में व्यवस्थित करने की कोशिश करता, समय और स्मृति के बीहड़ में अपने को फैलाकर, खोकर, फिर दूर तक ढूँढ़ते फिरूँगा..
लिखने का कुछ हासिल न होगा, लिखना देर रात का चुपचाप गुनगुनाना होगा, रात के सुनसान और अकेले के अनुसंधान में, भोले कवि और अलसाए ईश्वर के 'आएँगे अच्छे दिन !' की भावुकताखोर लोरियों के बाजू, टहलते दूर निकल जाने, कटहल, खीरा, झीरपानी, बोस्निया, कुर्द, लेबनॉन, मुनव्वर, मुज़फ़्फ़र के तसव्वुर में याद करना कि दुनिया में होना, तक़लीफ़ों के किन सिलसिलों में होना है..
Ajane Melon Mein | अजाने मेलों में
SKU: 9789381394809
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Author
Pramod Singh
Publisher
Hind Yugm
No. of Pages
205
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