भारतीय संस्कृतिके मूलाधाररूपमें वेदोंके अनन्तर पुराणोंका ही सम्मानपूर्ण स्थान है। वेदोंमें वर्णित अगम रहस्योंतक जन-सामान्यकी पहुँच नहीं हो पाती, परंतु भक्तिरस परिप्लुत पुराणोंकी मङ्गलमयी, शोकनिवारिणी, ज्ञानप्रदायिनी दिव्य कथाओंका श्रवण-मनन, पठन-पाठन कर जन-साधारण भी भक्तित्तत्त्वका अनुपम रहस्य सहज ही हृदयङ्गम कर लेते हैं। महाभारतमें कहा गया है- 'पुराणसंहिताः पुण्याः कथा धर्मार्थसंश्रिताः।' (आदिपर्व १।१६) अर्थात् पुराणोंकी पवित्र कथाएँ धर्म और अर्थको देनेवाली हैं। परमात्म-दर्शन अथवा शारीरिक एवं मानसिक आधि-व्याधिसे छुटकारा प्राप्त करनेके लिये अत्यन्त कल्याणकारी पुराणोंका श्रद्धापूर्वक पारायण करना चाहिये।
वामनपुराण मुख्यरूपसे भगवान् त्रिविक्रम विष्णुके दिव्य माहात्म्यका व्याख्याता है। इसमें कुरुक्षेत्र, कुरुजाङ्गल, पृथूदक आदि तीर्थोंका विस्तारसे विवेचन किया गया है। इस पुराणके अनुसार बलिका यज्ञ कुरुक्षेत्रमें ही हुआ था। इसके आदिवक्ता महर्षि पुलस्त्य हैं और आदि प्रश्नकर्ता तथा श्रोता देवर्षि नारद हैं। नारदजीने व्यासको, व्यासने अपने शिष्य लोमहर्षण सूतको और सूतजीने नैमिषारण्यमें शौनक आदि मुनियोंको इस पुराणकी कथा सुनायी थी। इसमें भगवान् वामन, नर-नारायण तथा भगवती दुर्गाके उत्तम चरित्रके साथ प्रह्लाद तथा श्रीदामा आदि भक्तोंके बड़े रम्य आख्यान हैं। मुख्यतः वैष्णवपुराण होते हुए भी इसमें शैव तथा शाक्तादि धर्मोंकी श्रेष्ठता एवं ऐक्यभावकी प्रतिष्ठा की गयी है। इस पुराणके उपक्रममें देवर्षि नारदके द्वारा प्रश्न और उसके उत्तरके रूपमें पुलस्त्यजीका वामनावतारका कथन, शिवजीका लीला-चरित्र, जीमूतवाहन आख्यान, ब्रह्माका मस्तक छेदन तथा कपालमोचन-आख्यानका वर्णन है। तदनन्तर दक्षयज्ञ-विध्वंस, हरिका कालरूप, कामदेव-दहन, अंधक वध, बलिका आख्यान, लक्ष्मी चरित्र, प्रेतोपाख्यान आदिका विस्तारसे निरूपण किया गया है। इसके अतिरिक्त इसमें प्रह्लादका नर-नारायणसे युद्ध, देवों, असुरोंके भिन्न-भिन्न वाहनोंका वर्णन, वामनके विविध स्वरूपों तथा निवास स्थानोंका वर्णन, विभिन्न व्रत, स्तोत्र और अन्तमें विष्णुभक्तिके उपदेशोंके साथ इस पुराणका उपसंहार हुआ है।
Shri Vamanpuran | श्रीवामनपुराण
Author
Vedvyas
Publisher
Gitapress
No. of Pages
477
























