वास्तवमें महाशक्ति ही परब्रह्म परमात्मा हैं, जो विभिन्न रूपोंमें लीलाएँ करती हैं, इन्हींकी शक्तिसे ब्रह्मा विश्वकी उत्पत्ति करते हैं, इन्हींकी शक्तिसे विष्णु सृष्टिका पालन करते हैं और शिव जगत्का संहार करते हैं। अर्थात् सृजन, पालन और संहार करनेवाली ये आद्या पराशक्ति ही हैं, ये ही पराशक्ति नवदुर्गा, दशमहाविद्या हैं। ये ही अन्नपूर्णा, जगद्धात्री, कात्यायनी एवं ललिताम्बा हैं। गायत्री, भुवनेश्वरी, काली, तारा, बगला, षोडशी, त्रिपुरा, धूमावती, मातंगी, कमला, पद्मावती, दुर्गा आदि इन्हींके रूप हैं। ये ही शक्तिमान् एवं ये ही शक्ति हैं, ये ही नर और नारी एवं माता, धाता तथा पितामह भी ये ही हैं।
'शक्तिपीठ-दर्शन' पुस्तकमें ५१ शक्तिपीठोंका वर्णन, उनकी वर्तमान स्थिति और उनसे सम्बन्धित कुछ विशेष लेखोंको प्रस्तुत किया गया है, जिनमें उनकी रोचक कथाएँ भी हैं। वैसे तो यह सम्पूर्ण संसार ही देवीमय है, सृष्टिके कण-कणमें उन्हीं आद्याशक्ति जगज्जननी, जगन्माताका निवास है, परंतु कुछ विशिष्ट स्थान, दिव्य क्षेत्र ऐसे भी हैं, जहाँ देवी चिन्मयरूपसे विराजती हैं और उनकी इसी सन्निधिके कारण वे स्थान भी चिन्मय हो गये हैं। शक्तिके इन्हीं स्थानोंको देवी-उपासनामें शक्तिपीठकी संज्ञा दी गयी है। इन स्थलोंपर पूजा, उपासना तथा साधनाका विशेष महत्त्व है।
Shaktipeeth Darshan | शक्तिपीठ दर्शन
Publisher
Gitapress
No. of Pages
144