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महाभारत संस्कृत वाङ्मयकी एक अमूल्य निधि है। इसे शास्त्रोंमें पंचम वेदके नामसे अभिहित किया गया है। यह भारतका सच्चा एवं बृहत् इतिहास तो है ही, जैसा कि इसके नामसे ही व्यक्त होता है; साथ ही इसमें धर्म, ज्ञान, वैराग्य, भक्ति, योग, नीति, सदाचार, अध्यात्म आदि सभी विषयोंका अत्यन्त विशद एवं सारगर्भित विवेचन किया गया है। इसे भारतीय ज्ञानका विश्वकोष कहा जाय तो कोई अत्युक्ति न होगी। इसके रचयिता महर्षि कृष्णद्वैपायन वेदव्यासजीने ही अपने श्रीमुखसे इसके विषयमें कहा है- 'यन्नेहास्ति न कुत्रचित्-जिस विषयकी चर्चा इसमें नहीं की गयी है, उसकी चर्चा अन्यत्र कहीं भी उपलब्ध नहीं है।' श्रीमद्भगवद्‌गीता-जैसा अमूल्य रत्न भी इसी महासागरकी देन है। परवर्ती अनेकानेक महाकवियोंने इसीको उपजीव्य बनाकर अपने अमर महाकाव्यों तथा नाटकोंकी रचना की है। इस ग्रन्थकी जितनी प्रशंसा की जाय, वह थोड़ी ही है। इसमें कुल मिलाकर एक लाख श्लोक हैं, इसी कारण इसे 'शतसाहस्त्री संहिता' के नामसे पुकारा जाता है।

Sankshipt Mahabharat 2 Parts | संक्षिप्त महाभारत 2 खण्ड

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  • Author

    Vedvyas

  • Publisher

    Gitapress

  • No. of Pages

    1967

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