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हरिवंश वेदार्थप्रकाशक महाभारत ग्रन्थका ही अन्तिम पर्व है। आदिपर्वके अनुक्रमणिकाध्यायमें महाभारतको सौ पर्वांवाला ग्रन्थ बतलाया गया है। उसके अन्तिम तीन पर्व इस हरिवंश-ग्रन्थमें ही सम्मिलित हैं। यह बात अनुक्रमणिकाध्यायमें स्पष्टरूपसे निर्दिष्ट है-

हरिवंशस्ततः पर्व पुराणं खिलसंज्ञितम् । विष्णुपर्व शिशोश्चर्या विष्णोः कंसवधस्तथा ॥

भविष्यं पर्व चाप्युक्तं खिलेष्वेवाद्भुतं महत्। एतत्पर्वशतं पूर्ण व्यासेनोक्तं महात्मना॥

(महा० आदि०, अध्याय २। ८२-८३)

जैसे वेदविहित सोमयाग उपनिषदोंके बिना साङ्ग सम्पन्न नहीं होता, वैसे ही श्रीमहाभारतका पारायण भी हरिवंश-पारायणके बिना पूर्ण नहीं होता। किंतु हरिवंशका पारायण गीता आदिकी तरह स्वतन्त्र भी किया जाता है। इस तरह यह 'पुराणं खिलसंज्ञितम्' आदिपर्व (२।८२) के आधारपर 'हरिवंशपुराण' तथा 'हरिवंशपर्व' इन दोनों ही नामोंसे विद्वानोंके बीच विख्यात है।

Mahabharat-Khilbhag Shri Harivanshpuran | महाभारत-खिलभाग श्री हरिवंशपुराण

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  • Publisher

    Gitapress

  • No. of Pages

    1422

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