नोबल पुरस्कार विजेता रवीन्द्रनाथ ठाकुर की गीतांजलि के गीतों का सरलार्थ करने का दुःसाहस इस पुस्तक में किया है पर मैं क्या कोई भी नहीं कह सकता कि इन गीतों को हमने समझा और कवि की उस भावभूमि को छुआ है जहाँ से इन गीतों की गंगा निकली है। बिना विराट अनन्त के दर्शन हुए, देखने में सरल पर भावों में सागर की गहराइयों से भी परे जाना बहुत दुर्लभ है। यही कारण कि गीता की तरह गीतांजलि चिर नवीन बनी रहेगी।
अंग्रेजी के प्रसिद्ध लेखक व कवि डब्ल्यू. बी. यीट्स ने लिखा है- "रवीन्द्रनाथ टैगोर चौसर के सन्देशवाहक की भाँति अपने शब्दों में गीत लिखते हैं। ये कविताएँ उन तरुमियों की मेज पर सुन्दर छपी हुई छोटी पुस्तक के रूप में नहीं पड़ी रहेगी, जो अपने अलम करों से उठाकर एक उसी निरर्थक जीवन पर आहें भर सके, जितना मात्र कि वे जीवन के विषय में जा सकी है। बल्कि क्रमागत पीढ़ियों में यामी लोग राजमार्ग पर चलते हुए और नावों में आगे बढ़ते हुए गुनगुनाएँगे। एक दूसरे की प्रतीक्षा करते हुए प्रेमी इन्हें गुनगुनाते हुए इस ईश्वर प्रेम में एक ऐसी ऐंडजालिक खाड़ी पायेंगे जिसमें उनका उग्रतर प्रेमोन्माद स्नान करते हुए अपने जीवन को नवीन कर सकेगा। इस कवि का हृदय प्रतिक्षण बिना किसी प्रकार के अघः पतन के अप्रतिहत रूप से उन तक जाता है। क्योंकि इसने जान लिया है कि वे समझेंगे और इसने अपने को उनके जीवन के वातावरण से अपूर्ण कर रखा है।
रवीन्द्रनाथ ने एक गीत में लिखा है। कि- कवि गीत लिखता है! लोग अपनी समझ के अनुसार उसका अर्थ लगाते हैं, पर वास्तविक अर्थ क्या है यह केवल आप (ईश्वर) ही समझते हैं और वह अर्थ आप तक पहुँच ही जाता है।
इस पुस्तक की विशेषता यह है कि पुस्तक गीतांजलि के गीतों
गीतांजली | Geetanjali
Author
Rabindranath Tagore
Publisher
Unique Traders
No. of Pages
304
























