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ससुराल में रहकर सागर ने देखा प्रफुल्ल ने जो कहा था, वही किया। घर के सब लोग सुखी हुए। सास प्रफुल्ल से इतनी प्रसन्न थी कि घर का सारा भार उसे सौंपकर सागर के लड़के को लिए फिरती रहती थी। ससुर ने भी प्रफुल्ल का गुण समझा। अब जो काम वह न करती वह उन्हें अच्छा ही न लगता था। सास-ससुर प्रफुल्ल से पूछे बिना कोई काम नहीं करते थे। ब्रह्म ठकुरानी ने भी रसोई का भार प्रफुल्ल पर छोड़ दिया था। अब रसोई तीनों बहुएँ बनाती थीं, परन्तु जिस दिन प्रफुल्ल कुछ नहीं बनाती थी. उस दिन किसी को कुछ अच्छा न लगता था। जिसके पास प्रफुल्ल न खड़ी होती थी वही सोचता था कि आज भरपेट भोजन न कर सका। अन्त में नयन बहू भी उसकी प्रशंसक बन गई। अब वह किसी से कलह नहीं करती थी। सागर इस बार बहुत दिन बाप के वहाँ जाकर नहीं ठहर सकी, लौट आई। यह सब लोगो के लिए बड़े आश्चर्य की बात थी, परन्तु प्रफुल्ल के लिए नहीं । प्रफुल्ल ने निष्काम धर्म का अभ्यास किया था। प्रफुल्ल गृहस्थी में आकर ही यथार्थ संन्यासिनी हुई थी। उसे कोई कामना नहीं थी वह केवल काम खोजती थी। कामना का अर्थ है अपना सुख खोजना, काम का अर्थ है दूसरे का सुख खोजना प्रफुल्ल भवानी ठाकुर द्वारा सान पर चढ़ाई हुई तलवार थी जिसने सांसारिक कष्टों को अनायास ही काट डाला था.......

प्रफुल्ल का झगड़ा अब ब्रजेश्वर के साथ था। वह कहती थी. मैं अकेली ही तुम्हारी स्त्री नहीं हूँ। तुम जैसे मेरे हो, वैसे ही सागर और नयन बहू के भी हो। वे दोनों भी तुम्हारी पूजा क्यों नहीं कर पाती? ब्रजेश्वर यह कुछ नहीं सुनता था। उसका हृदय केवल प्रफुल्लमय था। प्रफुल्ल कहती थी. मुझ जैसा ही उन्हें भी प्यार करो। अन्यथा मुझ पर तुम्हारा प्रेम पूर्ण न होगा। मैं और वे एक ही हैं।' 

देवी चौधरानी | Devi Choudharani

SKU: 8190299492
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₹127.50Sale Price
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  • Author

    Bankimchandra Chattopadyay

  • Publisher

    Navoday Prakashan

  • No. of Pages

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