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बाबा के उर्दू-फारसी के अबूझ घटाटोप में, पिता के अंग्रेजी-ज्ञान के असूझ कोहरे मैं मैंने केवल माँ की प्रभाती और लोरी को ही समझा और उसी में काव्य की प्रेरणा को पाया।

फर्रुखाबाद के सर्वथा विपरीत संस्कृति वाले गृह में, जबलपुर से रामचरितमानस की एक प्रति और राम-जानकी-लक्ष्मण की छोटी-छोटी मूर्तियों से सजा चाँदी का छोटा सिंहासन लेकर माँ जब पालकी से उतरीं तब उनकी अवस्था १३ वर्ष और पिता जो की १७ वर्ष से अधिक नहीं थी। यह माँ का द्विरागमन था, विवाह तो जब वे दोनों ८ और १२ के थे, तभी हो चुका था।

यामा | Yama

SKU: 9788180313066
₹199.00 Regular Price
₹179.10Sale Price
Only 1 left in stock
  • Author

    Mahadevi Verma

  • Publisher

    Lokbharti Prakashan

  • No. of Pages

    105

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