उसका नाम सुदर्शन पुरुषार्थी था, स्टेशन डायरेक्टर भटनागर उसका नाम आने पर उसे सुदर्शन शरणार्थी कहता था। भटनागर रोज ग्यारह बजे मीटिंग लेता था, पुरुषार्थी ग्यारह बजे सो कर उठता था, लिहाजा रोज भटनागर साहब की बहुत-सी शिकायतें वह किसी-न-किसी शे'र से निपटा देता था। भटनागर साहब को सुन्दर कांड जुबानी याद था। वह मानस की किसी चौपाई से किसी भी बात का जवाब दे सकते थे, मगर वह मीटिंग में कार्यालयी भाषा से ही काम लेना पसन्द करते थे। किसी दफ्तरी कार्यवाही में पुरुषार्थी किसी शे'र का सन्दर्भ दे देता तो भटनागर साहब लाल स्याही से गोला बना देते, 'आपको कई बार कहा गया है कि दफ़्तर में दफ़्तरी भाषा का ही प्रयोग करें।' पुरुषार्थी इसका जवाब भी किसी फड़कते शे'र से देता-
हद चाहिए सजा में उकूबत के वास्ते
आखिर गुनाहगार हूँ काफ़िर नहीं हूँ मैं।
17 Ranade Road | 17 रानडे रोड
Author
Ravindra Kalia
Publisher
Bhartiya Gyanpeeth
No. of Pages
304
























