वीर सतसई (सूर्यमल्ल मिश्रण कृत) : सूर्यमल्ल मिश्रण जी के वीर सतसई ग्रन्थ को राजस्थान में स्वाधीनता के लिए वीरता की उद्घोषणा करने वाला अपूर्व ग्रन्थ माना जाता है। इस ग्रन्थ के पहले ही दोहे में वे ”समे पल्टी सीस“ का घोष करते हुए अंग्रेजी दासता के विरुद्ध विद्रोह के लिए उन्मुख होते हुए प्रतीत होते हैं। यह सम्पूर्ण कृति वीरता का पोषण करने तथा मातृभूमि की रक्षा के लिए मरने मिटने की प्रेरणा का संचार करती है। यह राजपूती शौर्य के चित्रण तथा काव्य शास्त्र की दृष्टि से उत्कृष्ट रचना है। राजस्थानी साहित्य में जो विविध काव्य-रूप विकसित हुए उनमें संख्यापरक काव्य-रूपों का विशेष स्थान है। संख्यापरक रचनाओं में हजारा, सतसई, शतक, अष्टोत्तरी, बहोत्तरी, बावनी, छत्तीसी, बत्तीसी, पच्चीसी, चैबीसी, बीसी, अष्टक आदि नाम की सहस्त्राधिक कृतियाँ उपलब्ध होती हैं। सामान्यतः ये रचनाएँ मुक्तक होती है। इन विविध संज्ञापरक रचनाओं में ‘सतसई’ का विशिष्ट स्थान है। ‘सतसई’ संज्ञक रचनाओं में सामान्यतः सात सौ अथवा इसके लगभग की संख्या में रचित दोहों का संग्रह कर दिया जाता है। वीर भावों को आधार बनाकर सर्वाधिक सतसइयाँ राजस्थानी में लिखी गई। वीररसावतार सूर्यमल्ल मिश्रण ने ‘वीर सतसई’ का निर्माण कर सतसई-परम्परा को नया मोड़ दिया। उन्होंने अपनी सतसई में किसी विशिष्ट सामन्त, राजा या ठाकुर को अपना आलम्बन नहीं बनाया। उनका आलम्बन बना सामान्य वीर पुरुष और सामान्य वीर नारी। वीर भावों की ऐसी सार्वजनिक सामान्यीकृत अभिव्यक्ति अन्यत्र दुर्लभ है।
Veer Satsai | वीर सतसई
Author
Narottamdas Swami
Narendra Bhanawat
Lakshmi Kamal
Publisher
Rajasthani Granthagar
No. of Pages
224

























समीक्षाएं
Best book for rajasthani history lover