"...हमारी मित्रमंडली ने कई दिनों अपनी उस रसप्रिया सखी का मातम मनाया था फिर वर्षों तक मुझे उसका कोई समाचार नहीं मिला।..." वही अनसूया अपनी दारुण जीवनी की पोटली लिए लेखिका से एक दिन टकरा गई। जिन पर उसने भरोसा किया, उन्हीं विषधरों ने उसे हँसकर उसके जीवन को रतिविलाप की गूँज से कैसा भर दिया था ! 'अचानक ही वह पगली न जाने किसे गाँव से अल्मोड़ा आ गई थी, ' उस पर... उन्माद भी विचित्र था, कभी झील- सा शीतल, कभी... अग्निज्वाला-सा उग्र... " उद्भ्रांत किशनुली को कारवी का ममत्वमय स्पर्श पालतू और सौम्य बना ही चला था कि अभागी अवैध सन्तान 'करण' को जन्म दे बैठी। सरल, ममत्वमयी कारवी और पगली किशनुली और उसके ' ढाँट' करण की अद्भुत गाथा कभी हँसाती है, तो कभी रुला देती है।
रतिविलाप । Rativilap
SKU: 9788183610667
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Author
Shivani
Publisher
Radhakrishna Prakashan
No. of Pages
147
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