राजस्थान लोक नृत्य, लोक गायन एवं लोक वादन के लिए विश्व विख्यात है। राजस्थान के लोक नृत्य, गायन एवं वादन जीवन का उल्लास सरलता से व्यक्त करते हैं। इन कलाओं के संप्रेषण में जीवन की महत्वपूर्ण घटनाएं सामुदायिक रूप से अभिव्यक्त होती हैं। समूह में एक साथ लोक कलाओं के प्रदर्शन से विचार साम्य पैदा होता है, और यह एकता ही मनुष्य में स्वस्थ मानवता के गुणों का विकास करती है।
प्राचीन काल में आदि मानव ने भी इसे केवल मनोरंजन का माध्यम नहीं माना क्योंकि इसके द्वारा उसे अलौकिक अनुभूति होती थी, वो मनोरंजन के स्तर से कहीं ऊंची होती थी। इसलिए लोक नृत्यों, गायन एवं वादन का जीवन में अविस्मरणीय योगदान है। मानव जीवन में लोक नृत्यों, गायन एवं वादन की रसानुभूति को निर्विवाद रूप से स्वीकारा गया है। यही लोगों की सामूहिक अभिव्यक्ति, लोकाभिव्यक्ति कहलाती है।
लोक नृत्य, गायन एवं वादन जीवन की अभिव्यक्ति के समान सहज और सरल माध्यम होते हैं। इसमें सरलता, सर्वगम्यता और सर्व सुलभता के गुण होते हैं। इन्हें सीखने और प्रदर्शित करने में सरलता रहती है। ये कहीं किसी के द्वारा सिखाए नहीं जाते हैं, न ही उन्हें समझने के लिए किसी प्रशिक्षण की आवश्यकता होती है। पुराने संस्कार तथा अनुकूल वातावरण से लोक नृत्य बचपन से ही बालक-बालिकाएं सीख जाते हैं। स्त्रियां विभिन्न त्यौहारों, विवाहादि के अवसर पर विभिन्न नृत्य करती हैं उसके लिए उन्हें किसी से शिक्षा नहीं लेनी पड़ती है।
लोक नृत्य, गायन एवं वादन प्राचीन काल से ही चले आ रहे हैं। लोक नृत्यों में जीवन की परंपरा उसके संस्कार जन-जन की उमंगे और लोगों का आध्यात्मिक विश्वास होता है। लोक नृत्यों में विविधता में
राजस्थान लोकाभिव्यक्ति केआयाम । Rajasthan Lokabhivyakti ke Aayam
Author
Pannalal Meghwal
Publisher
Sahityagar
No. of Pages
160