लेखक राकेश कुमार आर्य की यह पुस्तक इस बात की पुष्टि करवाती है कि इच्छा, विचार एवं संकल्प का जब समन्वय होता है तभी कार्य फलीभूत होता है और उसका सुपरिणाम निकलता है। कार्य में व्यवस्था होती है, जो इच्छा उत्पन्न करती है तभी विचार सार्थकता की ओर अग्रसर होते हैं। पुस्तक के इन अध्यायों में एक प्रकार से चिंतन है, व्यवस्था है। इसी उद्देश्य से शीर्षक सटीकता को प्रमाणित करता है। लेखक ने व्यथा के स्थान पर व्यवस्था पर बल दिया है और चिंता के स्थान पर चिंतन को स्थान दिया है। अतः व्यवस्था और चिंतन एक प्रकार 'वाद' का निराकरण करता है। "मनुस्मृति" को प्राचीनतम स्मृति एवं प्रमाणभूत शास्त्र के रूप में माना गया है। यह एक प्रकार से सामाजिक व्यवस्था का आधारभूत ग्रंथ है। इसमें दो बातें मुख्य हैं-पहला वैदिक विचारों की रक्षा करना एवं दूसरा एक ऐसे समाज की रचना हो जो सुदृढ़ हो । देखा जाए तो "मनुस्मृति" वास्तव में एक विधानात्मक शास्त्र है, जिसमें मानव समाज की वर्णव्यवस्था को स्पष्ट किया गया है। साथ ही व्यक्ति एवं समाज के लिए नैतिक कर्तव्यों एवं मर्यादाओं का विवेचन लेखक की लेखनी की गुणवत्ता है। मनुस्मृति के आधार पर विद्वान लेखक एक विचारक की दृष्टि में हम पाठकों के बीच दिखाई देते हैं! इस पुस्तक में उनका गूढ़ अध्ययन है। उनकी चिंतनशीलता, प्रखरता यत्र तत्र दिखाई देती है, क्योंकि आज जितने भी कानून सभी देशों में लागू हैं, उन सबकी प्रेरणा स्रोत मनुस्मृति है। क्योंकि यह विधान की दृष्टि से व्यवस्था की ओर अग्रसर करती है तो साथ ही सृजनात्मक दृष्टि से सुधारात्मक दृष्टि को अंगीकार करती है। 'मनु' सृष्टि के पहले मनुष्य हैं, मनु से ही 'मनुष्य' शब्द बना है
Manu aur Bharat ki Jativadi Vyavastha | मनु और भारत की जातिवादी व्यवस्था
Author
Rakesh kumar Arya
Publisher
Anu Prakashan
No. of Pages
128
























