मुम्बई माफिया पर कुछ लिखना, वह भी तब, जब बहुत कुछ कहा-सुना-लिखा-पढ़ा जा चुका हो। एक चुनौती है। उससे अधिक चुनौती यह है कि कितना सटीक और सधा हुआ काम आपके हाथ में आता है। कोशिश की है कि एक ऐसी किताब आपके लिए पेश करूँ जिसमें मुम्बई के स्याह सायों के संसार के ढेरों राज सामने आयें। पत्रकार होना एक बात है, एक पुस्तक की शक्ल में सामग्री पेश करना और बात ।
हर दिन जल्दबाजी में लिखे साहित्य यानी ख़बरों की कुछ दिनों तक ही कीमत होती है। आपके लिए सहेज कर रखने वाली एक किताब में वह सब होना चाहिए, जो उसे संग्रहणीय बना सके। देश का सबसे भयावह भूमिगत संसार पूरे विश्व में जा पहुँचा है। ये तो ऐसे यायावर प्रेत हैं, जिनकी पहुँच से कुछ भी अछूता नहीं है।
सुकुर नारायण बखिया, लल्लू जोगी, बाना भाई, हाजी मिर्ज़ा मस्तान, करीम लाला तक तो मामला महज़ तस्करी का था । वरदराजन मुदलियार ने कच्ची शराब से जुआखानों तक, चकलों से हफ्तावसूली तक, वह सब किया, जिसे एक संगठित अपराधी गिरोह का बीज पड़ने की संज्ञा दे सकते हैं। उसके बाद मन्या सुर्वे, आलमज़ेब, अमीरजादा, पापा गवली, बाबू रेशिम, दाऊद इब्राहिम, अरुण गवली, सुभाष ठाकुर, बंटी पांडे, हेमन्त पुजारी, रवि पुजारी, सन्तोष शेट्टी, विजय शेट्टी तक न जाने कितने किरदार अँधियाले संसार में आ पहुँचे, जिनके अनगिनत राज कभी फ़ाश न हो सके।
मुं'भाई' | Mum'Bhai'
Author
Vivek Agrawal
Publisher
Vani Prakashan
No. of Pages
320
























