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मीर, कबीर और बशीर एक साथ जो नाम आये हैं ये दरअसल इसी हक़ीक़ी ज़ुबान का तससुल हैं जो यहाँ के लोग बोलते हैं और यही ज़ुबान परवान चढ़ी है। अवाम की बोलचाल की ज़ुबान उसमें अरबी, फ़ारसी और अंग्रेज़ी ज़ुबान हमारी सदियों की ज़िन्दगी और उसकी तहज़ीब में रच बस कर आये हैं। और अब हिन्दुस्तानी मिज़ाज और हिन्दुस्तानी आत्मा का मुनासिब इज़हार हैं। बशीर बद्र से पहले बरसों से आलमी लहजे के जो लफ़्ज़ हमारी ज़िन्दगी और हमारे शहरों में आ गये थे लेकिन ग़ज़ल के लिए खुरदुरे थे। यही खुदुरे लफ़्ज़ अब बशीर बद्र की ग़ज़ल में नरम-सच्चे और मीठे हो गये हैं। आज की ज़िन्दगी का एहसास उनकी ग़ज़ल है और वो ग़ज़ल की दुनिया में यक्ताँ हैं। आज ग़ज़ल का कोई तज़किरा बशीर बद्र के बग़ैर मुकम्मल नहीं हो सकता ।

Naye Mausamon Ka Pata | नये मौसमों का पता

SKU: 9789357756587
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  • Author

    Bashir Badra

  • Publisher

    Vani Prakashan

  • No. of Pages

    176

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